“उत्तर प्रदेश का नजूल संपत्ति विधेयक: सार्वजनिक भूमि उपयोग सुनिश्चित करना या गरीबों को विस्थापित करना (Nazul Property Bill) – उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक, 2024, राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में विवाद का केंद्र बिंदु बन गया है। इस कानून का उद्देश्य नजूल भूमि – सरकारी स्वामित्व वाली भूमि, जिसे सीधे राज्य संपत्ति के रूप में प्रबंधित नहीं किया जाता है – को निजी स्वामित्व में बदलने से रोककर विनियमित करना है। हालाँकि विधेयक ने महत्वपूर्ण ध्यान और बहस बटोरी है, लेकिन अंततः इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये भूमि सार्वजनिक उपयोग के लिए सरकारी नियंत्रण में रहें।
उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक, 2024 क्या है?
उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति विधेयक, 2024, नजूल भूमि को निजी स्वामित्व में बदलने से रोककर उसे विनियमित करने का प्रयास करता है। प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:
अदालती कार्यवाही रद्द करना: नजूल भूमि को निजी व्यक्तियों या संस्थानों को हस्तांतरित करने की कोई भी अदालती कार्यवाही या आवेदन रद्द और खारिज कर दिए जाएंगे।
ब्याज के साथ रिफंड: स्वामित्व परिवर्तन की प्रत्याशा में किए गए भुगतान ब्याज के साथ वापस कर दिए जाएंगे, जिसकी गणना जमा तिथि से भारतीय स्टेट बैंक की सीमांत निधि आधारित ऋण दर (एमसीएलआर) पर की जाएगी।
पट्टा विस्तार: सरकार वर्तमान पट्टाधारकों के लिए अच्छी स्थिति में पट्टे का विस्तार कर सकती है, यह सुनिश्चित करते हुए कि आज्ञाकारी पट्टाधारक भूमि को सरकारी संपत्ति के रूप में बनाए रखते हुए इसका उपयोग जारी रख सकते हैं।
विरोध और विवाद
इस बिल को न केवल इंडिया ब्लॉक बल्कि बीजेपी विधायकों और सहयोगियों के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। विवाद तब और बढ़ गया जब प्रयागराज से भाजपा विधायक हर्षवर्द्धन बाजपेयी ने एक सदी से अधिक समय से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों की दुर्दशा को उजागर करते हुए आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि इन परिवारों को विस्थापित करना उचित नहीं था और यह पीएम आवास योजना के तहत गरीबों को आवास प्रदान करने के सरकार के प्रयासों के खिलाफ है।
सिद्धार्थ नाथ सिंह जैसे अन्य भाजपा विधायकों और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के रघुराज प्रताप सिंह जैसे सहयोगियों ने भी अपनी चिंताएँ व्यक्त कीं। उन्होंने वास्तविक स्वामित्व वाले लोगों को नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने की अनुमति देने और बड़े पैमाने पर विस्थापन और दुरुपयोग को रोकने के लिए विधेयक पर पुनर्विचार करने के प्रावधानों के लिए तर्क दिया।
सरकार की प्रतिक्रिया
संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा को आश्वासन दिया कि विधेयक के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को राहत मिलेगी। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि:
आज्ञाकारी पट्टाधारकों के लिए कोई बेदखली नहीं: जिन लोगों ने अपने पट्टे बरकरार रखे हैं और शर्तों का उल्लंघन नहीं किया है, उन्हें अपने पट्टे नवीनीकृत करा दिए जाएंगे।
रिफंड विकल्प: जो लोग अपने पट्टे को नवीनीकृत नहीं करना चाहते हैं वे अपना पैसा वापस पा सकते हैं।
सार्वजनिक उपयोग और विकास: सरकारी भूमि सार्वजनिक हित और विकास के लिए है।
आगे का रास्ता
यूपी विधानसभा में पारित होने के बाद, विधेयक को आगे की समीक्षा के लिए एक चयन समिति को भेजा गया था। यह निर्णय भाजपा के प्रमुख नेताओं की एक बैठक के बाद लिया गया और इसका प्रस्ताव भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी ने रखा। चयन समिति से दो महीने में रिपोर्ट देने की उम्मीद है।
नजूल संपत्ति विधेयक की आवश्यकता क्यों है?
नजूल संपत्ति विधेयक की आवश्यकता सार्वजनिक महत्व की विभिन्न विकास गतिविधियों के लिए भूमि की तत्काल आवश्यकता से उत्पन्न होती है। सुरेश खन्ना ने इस बात पर
प्रकाश डाला:
विकास के लिए भूमि: पारंपरिक तरीकों से भूमि प्राप्त करने में भारी व्यय और देरी होती है।
ऐतिहासिक नीतियां: पिछली नीतियों ने नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड में बदलने की अनुमति दी, जिससे विविध दावे हुए और भूमि बैंक खत्म हो गए।
जनहित: राज्य सरकार का लक्ष्य नजूल भूमि को पुनः प्राप्त करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सार्वजनिक उपयोग और विकास गतिविधियों के लिए उपलब्ध हो, पिछली नीतियों से उत्पन्न अनिश्चितताओं और मुकदमों से बचा जा सके।
निष्कर्ष
विवाद और भारी विरोध के बावजूद, यूपी विधानसभा ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा के प्रावधानों के साथ नजूल संपत्ति विधेयक पारित कर दिया। यह कानून सरकारी स्वामित्व वाली भूमि को विनियमित करने और सार्वजनिक विकास के लिए इसका उपयोग सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालाँकि, इसके कार्यान्वयन और प्रभाव पर बारीकी से निगरानी जारी रहेगी क्योंकि चयन समिति बिल के विवरण की समीक्षा करती है।