आज केंद्र सरकार ने port Blair का नाम बदलकर ‘Shree Vijaya Puram’ रखने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि Shree Vijaya Puram नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्राप्त विजय और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह की अनोखी भूमिका का प्रतीक है।

Shree Vijaya puram
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उन्होंने कहा, “देश को औपनिवेशिक छाप से मुक्त करने के लिए आज हमने  Port Blair का नाम बदलकर Shree Vijaya Puram करने का निर्णय लिया है।” सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का स्वतंत्रता संग्राम में अतुलनीय स्थान है। यहीं पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार तिरंगा फहराया था।

गृह मंत्री ने वीर सावरकर को याद करते हुए कहा कि इस द्वीप में स्थित सेल्युलर जेल में वीर सावरकर और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने एक स्वतंत्र भारत के लिए संघर्ष किया था। यह जेल आज भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण धरोहर है।

Shree Vijaya puram
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इसके अलावा, शाह ने इस द्वीप के ऐतिहासिक महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि जिस द्वीप ने कभी चोल साम्राज्य की नौसैनिक शक्ति का आधार बनाया था, वह आज भारत की सामरिक और विकास संबंधी आकांक्षाओं का केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है.

Shree Vijaya puram का port Blair नाम क्यों पड़ा था,

गौरतलब है कि अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी, पोर्ट ब्लेयर, का नाम ब्रिटिश औपनिवेशिक नौसेना अधिकारी कैप्टन आर्चिबाल्ड ब्लेयर के नाम पर रखा गया था।

आज यह शहर कई संग्रहालयों और भारतीय नौसेना के प्रमुख नौसैनिक अड्डे INS जरावा का घर है। साथ ही यहाँ भारतीय तटरक्षक बल, अंडमान और निकोबार पुलिस, और भारतीय सशस्त्र बलों के पहले एकीकृत त्रि-कमांड मुख्यालय, अंडमान और निकोबार कमांड के समुद्री और वायु अड्डे भी स्थित हैं।

https://youtu.be/4fuG0AQjCVE?si=-5mbIlnsfZDcHpx2

इससे पहले जुलाई में, सरकार ने राष्ट्रपति भवन के प्रतिष्ठित ‘दरबार हॉल’ और ‘अशोक हॉल’ का नाम बदलकर क्रमशः ‘गणतंत्र मंडप’ और ‘अशोक मंडप’ कर दिया था। राष्ट्रपति सचिवालय ने इस संदर्भ में कहा, “राष्ट्रपति भवन के वातावरण को भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और भावना से समृद्ध करने का सतत प्रयास किया जा रहा है।”

श्री विजया पुरम का यह नया नाम भारत के सामरिक और सांस्कृतिक गर्व का प्रतिनिधित्व करता है, और इसे औपनिवेशिक छाप से मुक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

 

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