भारत अब उत्तरी गोलार्ध के देशों से लाएगा चीते, दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया की जगह नए विकल्पों पर विचार……………?
भारत के वन्यजीव संरक्षण में नया कदम:
भारत अब अपने वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में बदलाव करने जा रहा है। दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से चीते लाने की परंपरा को बदलते हुए, भारत उत्तरी गोलार्ध के देशों से भी चीते लाने पर विचार कर रहा है। यह बदलाव जैविक समस्याओं को हल करने और चीतों के बेहतर संरक्षण के लिए किया जा रहा है।
अब तक की स्थिति:
भारतीय वन्यजीव अभ्यारण्य में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए चीतों ने जैव-लय संबंधित समस्याओं का सामना किया है। इन चीतों में सर्दियों के मौसम के दौरान मोटी चमड़ी विकसित हो गई थी, जो भारतीय गर्मियों और मानसून में उनके लिए समस्याजनक साबित हुई।
इससे कई चीतों की मौत हो गई, जो मुख्यतः ब्लड इंफेक्शन और कीड़े के संक्रमण के कारण हुई थी।
नई संभावनाएँ:
भारत अब सोमालिया, केन्या, तंजानिया और सूडान जैसे उत्तरी गोलार्ध के देशों से चीते लाने की योजना पर विचार कर रहा है। उत्तरी गोलार्ध के देशों से लाए गए चीतों में मौसम के प्रति अधिक अनुकूलता देखने को मिल सकती है, जिससे उनके जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।
संबंधित चुनौतियाँ और समाधान:
चीन और पाकिस्तान के चीते लाने में चुनौतियों का सामना करने के बाद, भारत ने यह निर्णय लिया कि उत्तरी गोलार्ध के देशों से चीते लाना ज्यादा प्रभावी होगा। इससे जैव-लय संबंधित समस्याओं को कम किया जा सकेगा। विशेष रूप से, भारतीय मौसम और उत्तरी गोलार्ध के मौसम के बीच सर्कैडियन-लय के अंतर को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया है।
भविष्य की योजना:
भारत की योजना में जंगलों में शिकार के आधार को बढ़ाना, तेंदुए की आबादी को नियंत्रित करना और गांधी सागर वन्यजीव अभ्यारण्य को पूरी तरह से तैयार करना शामिल है। भारतीय वन्यजीव विशेषज्ञ, राजेश गोपाल के अनुसार, उत्तरी गोलार्ध के देशों से लाए गए चीतों की तीसरी पीढ़ी में जैविक समस्याओं का सामना करने की क्षमता अधिक होगी।
निष्कर्ष:
भारत का यह नया कदम वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जो चीतों के बेहतर संरक्षण और उनकी जैविक जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा रहा है। इससे भारतीय वन्यजीव अभ्यारण्य में चीतों के संरक्षण और उनकी सुरक्षा में सुधार होने की संभावना है