वॉलेट में रखे-रखे कार्ड की क्लोनिंग, बैंक से पैसे गायब, नया स्कैम नींद उड़ा देगा, इलाज जेब में ही है (Cloning of cards kept in wallet, money missing from bank, new scam will give sleepless nights, cure is in pocket only.)
स्कैम के इस तरीके में कार्ड का क्लोन बनाया जाता है. वैसे नहीं जैसे हमें पता है. मतलब कार्ड चुराकर या किसी और तरीके से कार्ड की डिटेल नहीं लिए जाएंगे. कार्ड आपकी जेब में या आपके वॉलेट में ही रहेगा. फिर भी क्लोनिंग होगी और फ्रॉड होगा. इसलिए फ्रॉड का तरीका और बचने का जुगाड़ जान लीजिए.
HDFC के कार्ड से 12 हजार रुपये का स्कैम हो गया. कोई OTP नहीं आया और 12 हजार रुपये में अमेरिका में गिफ्ट कार्ड खरीदा गया. HDFC बैंक ने शिकायत के बाद कस्टमर के पैसे वापस कर दिए. बैंक ने ऐसा अपनी मर्जी से नहीं किया बल्कि इसके पीछू है RBI नियम. अगर बिना OTP शेयर हुए स्कैम हुआ तो बैंक जिम्मेदार. इतना पढ़कर आप कहोगे, ठीक है भईया तुम अपनी पीठ ठोक लो. तुमने इस नियम के बारे में बताया था. अब क्या, स्टोरी खत्म. नहीं जनाब. स्टोरी यहां खत्म नहीं, बल्कि शुरू होती है. क्योंकि स्कैम का तरीका नया है.
स्कैम के इस तरीके में कार्ड का क्लोन बनाया जाता है. लेकिन वैसे नहीं जैसे हमें पता है. मतलब कार्ड चुराकर या किसी और तरीके से कार्ड की डिटेल नहीं लिए जाएंगे. कार्ड आपकी जेब में या आपके वॉलेट में ही रहेगा. फिर भी क्लोनिंग होगी और फ्रॉड होगा. इसलिए फ्रॉड का तरीका और बचने का जुगाड़ जान लीजिए.
स्कैम कैसे होगा?
कार्ड की क्लोनिंग होगी एकदम खुल्लम-खुल्ला जगह पर. जैसे इस केस में हुआ. पान की दुकान से लेकर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में. ऐसी कोई भी जगह जहां आपका वॉलेट पॉकेट में पड़ा रहता है. अपराधी किसी भी तरीके से आपके पास आएंगे. बातों में उलझाने की कोशिश करेंगे. कई बार आपसे टकराने और सॉरी बोलने का भी अभिनय होगा. ये सब इसलिए ताकि आपके नजदीक रहा जा सके और फिर जेब में पड़ी क्लोन मशीन से आपके कार्ड की डिटेल्स हासिल किए जा सकें. डिटेल्स हासिल होंगे रेडियो रीडर से.
रेडियो मतलब radio frequency
आपने ध्यान दिया होगा कि हमारे डेबिट और क्रेडिट कार्ड में एक छोटू सी चिप लगी होती है. इस चिप को कहते हैं Radio Frequencies Identification (RFID). आपकी पूरी जानकारी इसी चिप में होती है. मतलब कार्ड के नंबर से लेकर CVV और बाकी सब. बाकी कार्ड का हिस्सा सिर्फ हमारी सहूलियत के लिए होता है. मतलब पकड़ने या वॉलेट में रखने के लिए. जब भी आप कार्ड को किसी मशीन में डालते हैं या टैप करते हैं तो इसी चिप को रीड करके पूरा लेनदेन होता है. इनकी फ्रीक्वेंसी भी फिक्स है. बोले तो 13.56 Mhz. कार्ड वाली मशीन से लेकर एटीएम इसी फ्रीक्वेंसी पर डिजाइन होते हैं ताकि वो आसानी से डेटा रीड कर सकें.
ये बहुत कम ताकत वाली फ्रीक्वेंसी है जो मशीन के पास में होने पर ही काम करती है. चूंकि ये एक रेडियो फ्रीक्वेंसी है तो वॉलेट या कपड़ा भी सिग्नल नहीं रोक पाता. वैसे तो इसका दायरा मोटा-माटी कुछ इंच तक सीमित होता है, मगर एक तगड़े RFID रीडर से कुछ फीट की दूरी से भी डिटेल्स को रीड किया जा सकता है. इतना पढ़कर आप पक्का पूछोगे कि इसका क्या इलाज है.
RFID ब्लॉकर
इसका सबसे अच्छा उदाहरण है मार्केट में मिलने वाले वॉलेट. कई कंपनियां बाकायदा इस फीचर को हाइलाइट करती हैं. वॉलेट के फीचर में लिखा होता है RFID Protection. अच्छी बात ये है कि ये बेसिक से लेकर महंगे वॉलेट में मिलता है. ऐसे वॉलेट में कार्बन फाइबर से लेकर बेहद पतले एल्युमिनियम फॉयल का उपयोग किया जाता है. ये दोनों ही पदार्थ रेडियो सिग्नल को आरपार नहीं जाने देते.
कुछ वॉलेट में एक माइक्रोचिप भी लगी होती है जो कार्ड की फ्रीक्वेंसी को काट देती है. आपने वॉलेट लेते समय बस इतना देखना है कि वो RFID Protection वाला हो. ऐसा वॉलेट सिर्फ आपके बैंक के कार्ड की सेफ़्टी ही नहीं करता बल्कि दूसरे तमाम कार्ड मसलन आईडी, पासपोर्ट, स्मार्ट कार्ड को भी सेफ रखता है. वैसे अगर आपने नया वॉलेट नहीं लेना तो RFID blocker खरीदकर वॉलेट में रख लीजिए. कार्ड के साइज का होता और आसानी से मिल जाता है.बिना देर किए खरीद लीजिए.