अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने हाल ही में एक और नया कानून पास किया, जिसने वैश्विक ध्यान खींचा। इस नए कानून के तहत, महिलाओं को अब सार्वजनिक स्थानों पर बोलने की अनुमति नहीं होगी। इसके अतिरिक्त, महिलाओं को सार्वजनिक रूप से अपने शरीर और चेहरे को मोटे कपड़ों से ढकना अनिवार्य कर दिया गया है। तालिबान का कहना है कि यह निर्णय इसलिए लिया गया है क्योंकि महिलाओं की आवाज पुरुषों को विचलित करती है।

 

तालिबान
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यह कानून तालिबान के शासन में महिलाओं की भूमिका और उनके अधिकारों को लेकर चल रही बहस में एक नया मोड़ ला दिया है। अभी तक केवल, महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में सीमित कर दिया गया था, लेकिन इस नए कानून ने उनकी सामाजिक सहभागिता को और भी कम कर दिया है।

 

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में इस कानून के खिलाफ तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने इसे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन और उनका उत्पीड़न बताया है। संयुक्त राष्ट्र के उच्चाधिकारियों का कहना है कि यह कानून महिलाओं की स्वतंत्रता, गरिमा और मौलिक मानवाधिकारों का सीधा उल्लंघन करता है। वे इसे महिलाओं की आवाज को दबाने और उनके जीवन की बुनियादी स्वतंत्रताओं को सीमित करने के प्रयास के रूप में देखते हैं।

 

विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने इस कानून की आलोचना करते हुए कहा है कि यह महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देता है और समाज में एक असमानता की स्थिति उत्पन्न करता है। इन संगठनों का तर्क है कि महिलाओं को उनकी आवाज उठाने का अधिकार होना चाहिए और सार्वजनिक जीवन में उनकी सक्रिय भागीदारी से समाज को लाभ होता है।

 

इस कानून के लागू होने के बाद अफगानिस्तान में समाज के विभिन्न हिस्सों से विरोध और असहमति की आवाजें उठ रही हैं। कई नागरिक समाज संगठन, महिला अधिकार कार्यकर्ता और अन्य संगठनों ने इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया है। इन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह कदम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित करता है और उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन को कमजोर करता है।

 

इस विवादित कानून के पीछे तालिबान की सोच और उसके समाज के प्रति दृष्टिकोण पर भी सवाल उठ रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि यह कानून तालिबान की पुरानी और रूढ़िवादी सोच को दर्शाता है, जो महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।

 

जबकि तालिबान के समर्थक इसे समाज की नैतिकता और पारंपरिक मूल्यों की रक्षा का कदम मानते हैं, विरोधियों का कहना है कि यह केवल महिलाओं की आज़ादी को नियंत्रित करने का एक तरीका है। इससे न केवल महिलाओं की स्थिति में गिरावट आएगी, बल्कि समाज में एक व्यापक असंतोष भी उत्पन्न होगा।