भारत के दक्षिणी भाग में स्थित नीलकुरिंजी का फूल एक अनोखी प्राकृतिक विरासत है। यह फूल 12 साल में एक बार खिलता है, जिससे इसकी सुंदरता और अधिक खास बन जाती है। खासकर केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में पाए जाने वाले इस पौधे को स्थानीय लोग विशेष महत्व देते हैं।
नीलकुरिंजी के खिले हुए पुष्प तमिलनाडु में नीलगिरी की पहाड़ियों पर बसे उटागाई के पास टोडा आदिवासी गांव पिक्कापति मांडू में देखे गए हैं। देखने पर लग रहा है जैसे समंदर ने नीले पुष्पों की चादर ओढ़ ली हो। ये फूल 15 साल तक खराब नहीं होता। इसके शहद को बेहद खास माना जाता है। नीलकुरिंजी का फूल केवल एक प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि यह दक्षिण भारत की सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय धरोहर का भी हिस्सा है।
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नीलकुरिंजी का विशेष महत्व,
नीलकुरिंजी का फूल के खिलने की अवधि एक प्राकृतिक चक्र का हिस्सा है, जो हर 12 साल में होता है। इस दौरान, पहाड़ियों पर फैले नीले पुष्पों की चादर ऐसा दृश्य प्रस्तुत करती है, मानो प्रकृति ने अपनी रंग-बिरंगी पेंटिंग बनाई हो।
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भौगोलिक वितरण ,
यह फूल मुख्य रूप से नीलगिरी की पहाड़ियों में पाया जाता है, विशेषकर उटागाई के निकट टोडा आदिवासी गांव पिक्कापति मांडू में। यहां के शोला जंगलों में नीलकुरिंजी के पौधे उगते हैं, जो ठंडी जलवायु और उचित मिट्टी की आवश्यकता रखते हैं।
नीलकुरिंजी का फूल है पर्यटकों का आकर्षण,
नीलकुरिंजी के फूलों का खिलना एक प्रमुख पर्यटन आकर्षण है। जब ये खिलते हैं, तो पर्यटक दूर-दूर से इनकी सुंदरता देखने आते हैं। कई लोग तो इस विशेष अवसर का आनंद लेने के लिए भारी खर्च भी करते हैं।
शहद का खास महत्व,
नीलकुरिंजी का शहद भी अपनी विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है। इसे उच्च गुणवत्ता वाला माना जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। स्थानीय लोग इसे विशेष अवसरों पर उपयोग करते हैं